रांची। विश्वविद्यालय के दीक्षांत मंडप में विभिन्न जनजातीय संगठनों द्वारा जनजातीय गौरव दिवस आयोजन समिति के तत्वावधान में जनजातीय गौरव दिवस बड़े उत्साह और सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाया गया। कार्यक्रम में जनजातीय लोककला, लोकनृत्य और पारंपरिक संगीत की आकर्षक का केंद्र रहीं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि झारखंड के राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार, मुख्य वक्ता जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक राजकिशोर हांसदा और कार्यक्रम संयोजक जगलाल पाहन रहे.
मुख्य अतिथि राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने 15 नवंबर भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय जनजाति गौरव दिवस के रूप में घोषित किया, जो आने वाले वर्षों में भारतवासियों के लिए प्रेरणा का काम करेगा।
उन्होंने देश दुनिया को बता दिया की जनजाति प्रतिरोध आंदोलन भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक अभिन्न अंग है। जनजाति समाज का समृद्धशाली इतिहास रहा है उनकी गौरव गाथाएं आज भी स्थानीय लोकगीत और लोकोक्तियों में देखने को मिलती है। उन्होंने आगे कहा कि भगवान बिरसा मुंडा ने बहुत कम आयु में जनजाति पहचान और स्वायत्तता के लिए अपना जीवन राष्ट्र पर समर्पित कर दिया। उनका युद्ध केवल जल, जंगल, जमीन तक सीमित नहीं था बल्कि आदिवासी अस्मिता, संस्कृति, आस्था, अध्यात्म, परंपराएं और स्वधर्म की स्थापना के साथ स्वराज प्राप्त करने का था। उनका संघर्ष जनजाति संस्कृति साथ स्वतंत्रत के लिए जागरण स्वरूप था। यह आंदोलन जनजाति के अस्मिता उसकी पहचान को मिटाने वाले शोषण और अन्याय के प्रतिकार का प्रतीक बना। जनजातीय समुदायों ने सदियों से अपनी परंपराओं को जीवित रखा है। इसलिए यह हम सभी का दायित्व है कि इस विरासत को सुरक्षित रखें, उसका सम्मान करें और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँ।
मुख्य वक्ता जनजाति सुरक्षा मंच के राजकिशोर हांसदा ने अपने संबोधन में कहा कि देश भर में अनेक जनजाति महापुरुषों और स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अंग्रेजों तथा मुगलों के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष किया और अपना अद्वितीय बलिदान दिया।
आज यह चिंता का विषय है कि हमारे जनजातीय समाज की संस्कृति अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है।
उसमें मुख्यतः धर्मांतरण, बांग्लादेशियों का अवैध घुसपैठ जो हमारे जनजाति समाज की महिलाओं से शादी करके जमीन तो हड़प ही रहे हैं और ऐसी महिलाओं को जनजाति क्षेत्र से चुनाव लड़ा कर अपना हित भी साध रहे हैं। जनजातीय क्षेत्रों में घुसपैठ, भूमि अधिग्रहण तथा विवाह संबंधों का दुरुपयोग कर राजनीतिक और आर्थिक लाभ उठाने जैसी स्थितियाँ चिंता का विषय बन रही हैं। ऐसे मामलों से जनजातीय समुदायों की भूमि, अधिकार और सांस्कृतिक सुरक्षा प्रभावित होती है। ऐसे समय में आवश्यक है कि संपूर्ण सनातनी समाज आगे आकर जनजातीय संस्कृति, परंपरा और मूल्यों के संरक्षण का संकल्प ले। सनातन संस्कृति की जड़ें जनजातीय समाज में गहराई से जुड़ी हैं,
केंद्रीय पाहन जगलाल पाहन ने कार्यक्रम में बिरसा मुंडा को याद करते हुए कहा कि तिलका मांझी, बुधु भगत,नीलांबर–पीतांबर, जतरा टाना भगत तथा संथाल आंदोलन के सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो जैसे अनगिनत महापुरुषों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता और संस्कृति की रक्षा की। उनका योगदान न केवल जनजाति समाज बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज के लिए गौरव का विषय है।
झारखंड प्रदेश मुखिया संघ के अध्यक्ष सोमा उराँव ने संबोधन में संकल्प लिया कि भगवान बिरसा मुंडा के पद चिन्हों पर चलते हुए धर्मांतरण नहीं करेंगे, एक टाइम दो टाइम खाना नहीं खाकर बाल बच्चों को अवश्य पढ़ाएंगे, पुरखों के द्वारा दिया हुआ पूजा पद्धति में छेड़छाड़ नहीं करेंगे, अपनी धर्म संस्कृति रीति रिवाज परंपरा रूढि प्रथा को बचा के रखेंगे, नशा नहीं करेंगे, सभी कोई एकजुट रहेंगे।
इस भव्य कार्यक्रम में राज्यपाल के साथ जनजाति संगठनों के प्रतिनिधि राजकिशोर हांसदा, जगलाल पाहन, सुदन मुंडा, तनुजा मुंडा, संदीप उरांव, बबलू मुंडा, मेघा उरांव, सोमा उरांव, बुधराम बेदिया, नकुल तिर्की, अशोक मुंडा, पंचम भोगता मंचासीन रहे। सभी मंचासिन जनजाति प्रतिनिधियों ने भी कार्यक्रम में अपनी बातों को रखते हुए सभी जनजाति सेनानियों के प्रति अपना सम्मान जाहिर किया। कार्यक्रम का संचालन सुशील मरांडी ने किया।
वहीं कार्यक्रम में मुख्य रूप से झारखंड मुखिया संघ अध्यक्ष सोमा उरांव,वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री भगवान सहाय, क्षेत्रीय संगठन मंत्री प्रफुल्ल अकांत, पवन मंत्री, जगरनाथ भगत, सुरेंद्र लिंडा, प्रदीप लकड़ा, लूथरू उरांव, आशीष मुंडा, बालेश्वर पाहन, गुड्डू मुंडा, सुनील कुमार सिंह के अलावा बड़ी संख्या में अन्य लोग उपस्थित रहे।