 
            रांची । आदिवासी  महिलाओं के जमीन पर अधिकार विषय पर लैंड राइट फोर आदिवासी वीमेन ग्रुप की बैठक बगाईचा, नामकोम में हुई।जिसका मुख्य विषय था। इतिहास, नैतिकता और आदिवासी समाज में आदिवासी महिलाओं की हिंसा पर चर्चा किया गया। जमीन आदिवासी समाज की पहचान है पर इस पहचान में औरत की की पहचान सिर्फ पुरुष से सम्बंधित जैसे, मां, बहन,पत्नी, बेटी, के रूप में ही जानी जाती रहीं हैं उनका अपना स्वतंत्र पहचान नहीं बना हैं इसलिए कि स्त्रियां जमीन की मालिक नहीं होती हैं। मालिकाना अधिकार का ना होना उसमें उनकी पहचान से उन्हें वंचित करता है। जबकि जमीन बनाने, और खेती किसानी में उसका सबसे अधिक श्रम जाता है। सामाजिक मान्यताओं में खेती करने समय लड़का लड़की द्वारा विवाह कर खेती के काम किया जाता है। जिस घर में महिलाएं ना हो वहां जमीन बंजर हो जाती है। और जहां बंजर भूमि है वहां महिलाओं के सहयोग से खेती होता है वैसे ही घर बसने बसाने का प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रहा है। 
लेकिन समाज ने कभी उन्हें ताकत(पावर) के रूप में देखना या बनाने से वंचित(कमजोर) रखा है। वैसा ही आदिवासी समाज में जमीन का मालिकाना हक देने से समाज ने महिलाओं को वंचित रखा है। जो आदिवासी औरतों की स्वतंत्र पहचान बनने नहीं देता जो उनके कई अधिकारों से उन्हें वंचित करता है.
अगर पूराने दौर की बात किया जाए तो आदिवासी समाज में समुदायिक जमीन थी वह समुदाय का होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। समुदाय का सीधा मतलब तलाब, जंगल गोचर, आज भी समुदाय का ही है। लेकिन परिवार के अंदर खेती करने का वो व्यक्ति की जमीन ही होती थी जिस पर पड़ोसी उसके सहमति के बिना खेत नहीं कर सकता था।
लेकिन जब भी जमीन पर औरतों का मालिकाना हक की बात उठती है लोग तर्क देते हैं आदिवासी का जमीन समुदायिक जमीन हैं।
आदिवासी में कस्टमरी कानून बना हुआ है जो लिखित तौर पर नहीं है उस  कस्टमरी कानून में महिलाओं को जमीन देने की बात कही गयी है। कुछ जगह में सिर्फ परिवार  में महिलाएं हैं वहां भरण पोषण के लिए उपयोग होता है। पर स्त्रियों का नाम दर्ज नहीं है। यह प्रैक्टिस में नहीं है। 
खतियान में महिलाओं के नाम दर्ज नहीं है। इस बात से इंगित होता आ रहा हैं परम्परागत कस्टमरी लॉ धरातल पर नहीं है। आदिवासी समाज ने कस्टमरी कानून का हनन किया जिससे आज महिलाएं कोर्ट जा रहीं और धर्म के आधार पर हक की मांग कर रहीं हैं। यदि कानून धरातल पर होते तो आदिवासी समाज में डायन हत्या जैसे गम्भीर घटना को अंजाम नहीं दिया जाता। समाज को इस पर विचार-विमर्श करना चाहिए और औरतों के हक पर बराबरी मलिकाना हक जमीन पर मिलना चाहिए।
ग्रुप यह प्रयास करेगा कि कस्टमरी कानून और ग्रामसभा में निर्णय प्रक्रिया महिलाओं की भागीदारी पर कार्य करे।
बैठक में रंजनी मुर्मू,नितिशा खलखो, आकृति लकड़ा, अल्का आइंद, लिपि बाग, आलोका कुजूर, दीप्ति बेसरा, एलिना होरों, उपस्थिति थी।
 
                             
                             
                             
                             
                             
                             
                             
                             
                   
                   
                   
                   
                   
                   
                   
                   
                   
                 
                                    
                                 
                                    
                                 
                                    
                                 
                                    
                                 
                                    
                                