रांची। जनजाति सुरक्षा मंच की मीडिया प्रभारी एवं झारखंड प्रदेश मुखिया संघ के अध्यक्ष सोमा उराँव ने सांसद सुखदेव भगत एवं केशव कमलेश महतो से तीन सवाल पूछे।
1. सरना धर्म कोड चर्च की पुरानी मांग है तथा यदि सरना धर्म कोड मिल जाता है जैसे कि अन्य धर्म बौद्ध और जैनियों को मिला है , उसी प्रकार यदि सरना धर्म कोड मिल जाता है, तो क्या वर्तमान समय में जनजातीयों/ आदिवासियों को अभी भारत के संविधान के अनुसार 26 अनुच्छेदों में हेकर अधिकार प्राप्त है। क्या सरना धर्म कोड मिलने से 26 अनुच्छेदों में जो हक अधिकार मिल रहा है वह बरकरार रहेगा, इस बाबत आप दोनों महानुभाव से निवेदन है कि कैबिनेट से एक चिट्ठी निकलवाए जिसमें यह बात क्लियर हो कि सरना धर्म कोड मिलने से 26 अनुच्छेदों से प्राप्त होने वाले सभी हक और अधिकार बरकरार रहेंगे। यदि कैबिनेट से इस प्रकार का चिट्ठी निकलवाते हैं तो मैं सर्वप्रथम झारखंड में पहला सरना धर्म कोड मांगने वाला व्यक्ति रहूंगा और नहीं तो मेरी समझ से संविधान के अनुसार यदि सरना धर्म कोड मिल जाती है तो 26 अनुच्छेदों में से 24 अनुच्छेदों को दरकिनार कर केवल दो अनुच्छेदों में संविधान के अनुसार केवल 29 और 30 अनुच्छेदों में हक और अधिकार प्राप्त होगा जिसमें स्कूल कॉलेज खोलना, शिक्षा का प्रसार करना तथा धर्म का प्रचार करना ही रहेगा।तो क्या आदिवासी समाज 26 गो हक अधिकार को छोड़कर केवल दो अधिकार के लिए इतना मारामारी क्यों और वह भी चर्च की मांग पर तथा सरना धर्म कोड को बिना महामहिम राज्यपाल महोदय से हस्ताक्षर किए ही सीधे सीधे दिल्ली भेज देना क्या यह कानून का उलघंन नहीं है।?
यदि मेरा सरना धर्म कोड मिलने से हक अधिकार का हनन होगा तो मैं सरना धर्म कोड कतई स्वीकार नहीं करूंगा और मैं अभी वर्तमान समय में हिंदू धर्म के श्रेणी के अंतर्गत आता हूं, हिंदू हूं और वही रहूंगा, जबरदस्ती सरना धर्म कोड देकर धर्मांतरण करने का प्रयास नहीं करें अन्यथा मजबूरन मैं झारखंड उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 एवं सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 के अंतर्गत कोर्ट जाऊंगा और सिरे से खारिज कर दूंगा इसीलिए आप दोनों से मेरा निवेदन है कि सरना धर्म कोड देने से पहले कैबिनेट से एक चिट्ठी निकलावें की सरना धर्म कोड मिलने से आप लोगों की सभी 26 अनुच्छेदों में से जो हक अधिकार मिल रहा है वह बरकरार रहेगा तभी मुझे स्वीकार होगा अन्यथा नहीं।
सरना धर्म कोड का शपथ पत्र बनाकर आदिवासी माताएं बहने से जबरदस्ती शादी विवाह कर सारा का सारा आरक्षण का लाभ दूसरे लोग उठा रहे हैं।
2. दोनों नेता से मेरा निवेदन है कि और जनता, आदिवासी आपके मुंह से यह जानना चाहती है की जो अभी आदिवासी माताएं बहने के साथ बलात्कार हो रही है वैसे बिंदु पर आप दोनों चुप क्यों है, जैसे आज गोडा में एक आदिवासी महिला के साथ जबरदस्ती बलात्कार किया गया, इससे पूर्व बोकारो की घटना में भी आदिवासी मां बहन बेटी के साथ बलात्कार करने की प्रयास की गई और वैसे बलात्कारियों को सरकार के द्वारा नौकरी एवं रुपया दिया जा रहा है, इससे पूर्व गिरिडीह में भी एक आदिवासी महिला विधवा महिला के साथ जबरदस्ती सरना धर्म कोड का शपथ पत्र बनाकर जबरदस्ती शादी करने का प्रयास और दबाव बनाया जाता है इन विषयों पर आप दोनों चुप क्यों हैं जबकि आप दोनों सरकार के सर्वे सर्वा हैं। ऐसे विषयों पर भी आप दोनों बोलें आदिवासी समाज जानना चाहती है आखिर चुप क्यों है ?। उपरोक्त तीनों कांडों में आदिवासी माताएं बहने के साथ मुस्लिम समुदाय के ही सदस्य आरोपी हैं आखिर ऐसा क्यों ? आदिवासी समाज जानना चाहती है?
3. दोनों नेता से मेरा तीसरा एक विनम्र निवेदन है की जो वर्तमान समय में जाति प्रमाण पत्र निर्गत हो रही है, उस जाति प्रमाण पत्र में पिता के नाम के साथ-साथ पति का नाम होना अनिवार्य हो, इस बाबत भी आप दोनों कैबिनेट से एक चिट्ठी निर्गत करवायें, जिसमें जाति प्रमाण पत्र में पिता के नाम के साथ-साथ पति का नाम होना अनिवार्य हो।
अभी वर्तमान समय में गैर आदिवासी पुरुष जबरदस्ती आदिवासी माताएं बहने से डरा के धमका के, शादी कर रहे हैं और सबसे पहले धर्मांतरण एवं मायके से जाति प्रमाण पत्र बनाकर नौकरी, जमीन, सरकारी योजना का सभी लाभ, पंचायत के एकल पद जैसे मुखिया, प्रमुख एवं जिला परिषद अध्यक्ष का पद में भी दूसरे लोग काबिज हो रहे हैं इतना ही नहीं विधानसभा चुनाव में भी और लोकसभा चुनाव में भी दूसरे लोग काबिज हो रहे हैं। तथा बांग्लादेशी घुसबैठिए का बोलबाला हो रहा है।
इसीलिए आप दोनों से मेरा निवेदन है कि और सही में आप दोनों आदिवासी का हितैषी हैं, और आदिवासी का सही में भला चाहते हैं तो कैबिनेट से एक चिट्ठी निकलवा कर आदिवासी का कल्याण करें नहीं तो आदिवासी का हितेषी नहीं बल्कि आदिवासी का शोषण करता मानेंगे और आदिवासी का हक अधिकार को दूसरे को दिलवाने वाला मानेंगे।